पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४७८

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है अति गहन समिता जग में, हो, छाया है आज अंधेरा, पडा हुआ है आज विश्व में भीषण अन्धकार का डेरा, आज चुनौतो हम दे रहा यह दुदम तम त्रास भयानका, कहता है 'लो नष्ट हुए है सभी ज्योति के स्वप्न अचानक ।' शिन्तु महा मानव बहता है 'मम हिम मे है प्रसर प्रभाकर, मत मानव जगम मुसवायेगी ऊपा अमाहर।' घवडामो, जग को ज्योति दान देने हित, मपने कोमल अन्तर-तर मैं- जो अति मानव, पिया निमन्त्रित तू ने रवि निज-हिय-अम्बर में? सूर्य चक्र या चेधन कर तू, मत कर यो ब्रह्माण्ड विद, तू, ऐसी विकट साधना मत कर, ओ निर्मोही महासिद्ध, तू, यह तय तप-उज्ज्वल अन्तस्तल, पह तव दुर्बल देह पुरातन, अरे, भषक उट्टेगी, पर जा, भो बलिदागी, ओ करुणा धन 1 इस विषपायी जनम के ५४९