पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सहन कर सकेगी न, अरे यह अति तप-तेज, पुरानी काया, और, हमारा तो मबल है यही जिसे समझा तू मामा, तुझ देही को इसी देह मिस अब तक हम सबने पहचाना, तेरे इस शरीर को ही तो हमने अपनी निधि है माना, तय जजर पजर ही तो है, हम दोनो का एक सहारा, पहन रहा तो हो जायेगा बस अनाथ यह देश विचारा। डोक रही है यह पामरता, पाता भी गर्जन वरती है, भावो को बाली अधियाली हिय मे बिता-भय भरतो है, अरे, ज्योति तो है सेरे ही इन सकरण, स्वप्निल नयनो में, ये गदि पिचें अंधेरा होगा, तेरे जन-गण के अपनो मे, सोले रह, रेतू तोले रह, मत मिपने दे अपने लोचन, इन्ही टिमटिमाते दिपला से गोगा जग या मवर मोरन । ko हम विपाया मम के