पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४८०

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जब युग उग्रीवी होता है, जब सदिया करवट लेती है- मानवता को पुण्य सुतियाँ जव बरवान अमित देती हैं, अरे, तभी तो जग-मरुस्थल भे ऐसा कमल विहंस खिलता है, बडे भाग्य से जन-समूह को ऐसा पथ-दशक मिलता है, ना जाने कितने चिर सचित पुण्यो का प्रतिफल, तू आया, यह न भूलना कि है हमारे लिए, अमृत तेरी यह छाया। ? हम तेरी वेदना-व्यथा को ज्या जाने कैसे पहचान तेरी अतला गहराई को, फैसे जाये थाह लगाने? तृक्ष सा तो तू ही है, नरवर, तव समानधर्मा न यहा है, ओ सदियो आने वाले, तेरी उपमा सुलभ वहाँ है? त अपना अपमान स्वय है, अनुपमेय दू, अरे निराले, तुशकरे तू ही जान सके है, ओ बाजानू भुजाओं वाले। हम विप्रपाया जनमत ४५१