पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४८१

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आज बनायें क्या हग तेरे अगणित वरदानो की सूची? तव तप-बल ही से इस भू पर उठी बहुत मानवता ऊँची, रैग रहे थे जो कि पेट के बल, इस भूमि खण्ड के जग-जन,- वे ही अब तो उन्नत शिर है, सबल हुए उनके दुबल मन, तव प्रसाद से प्राप्त हुआ है सदियो का खोया अपनापन, जरे, आज हुकार उठे हैं ये नगे, भूख, जजर तन। अपनो को मत हाम, दया कर, मत मर, मत मर, अरे अमानी, ग्रहण कर सकेंगें न कभी हम तेरा प्राण-दान, ओ दानी, अल्प प्राण हम, महा प्राण तू, स्वल्प निष्ठ हम, तू दृढवेता, मरण-वरण मत पर, रे नरवर, मत बन, मत बन, तू नचिवेता। तुझसे हमे बहुत पाना है, अरे अभी तो फेवल अब है, 'इति' मत कर, ले देख, हमारा वितना विस्तृत, बाघुर पथ है। हम विपपायी जनमक ४१२