पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४८६

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अब विपकी बारी आयी, ओ, मधुरामृत पीने वाले, फेर रहे हो क्यो अपना मुन देव हलाहल के प्याले। यीयन के सपने का मववा- जागृति में विप रूप हुआ, तनिक निछावर तो हो जाओ, पौसा प अनूप हुआ, ओ शौकीन ढालने वाले, इराने गया घराभो हो? वह भी चरसा, नसो हसे भी, क्यो मन मे सकुचामो हो आज पट गये हो आकर तुम काट कृट विष के पाले। पर, न फेरना तुम अपना भुरा देश हलाहल के ? प्याले। मधु चयखा मधवा भी ढाला, अधरामृत का पान किया, स्वाद-समस्या फी उलझन का भेद भरम कुछ जान लिमा, मान लिया, मधु रस चख कर ही, अपने को पौने छाला शायद, भूल गये थे विप को देख सुधा - रस का प्याला । दम वियपा पानमक ५८ ५५७