पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४८७

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हाँ देखो यह अमृत-अनृतता प्रकटी, भो जोने वाले, फेर रहे अब पयो अपना मुस देय हलाहल के प्याले? असलानता, सतत बिलगता, निपट उपेक्षा आयी हैं, कालकूट के विषम बोले- प्याले भर - भर लायी हैं, भर नैनो मे सपना, हिय में - भर-भर सरस उमग नयो,- गरल भरे ये पात्र घढा लो, निसरे छबि रस रंग - मयी, देखो तो प्यालो से छलके क्या नीले-काले कर रहे हो क्यो अपना मुंह देख हलाहल के प्याले पोने वालो को नापा में अमिय गरल का भेद मही, स्वाद - समीक्षा में होता है मधु - कटु का बिच्छेद कही। रम-अनेवासा, रुप - भिन्नता,- है नखरा गुणवानो का, सुघा हलाहल एक रूप है, भौल यही मस्तानो वा। ११८ हम विषपाया जनम