पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४९१

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जिन कोठरियों में गुत्ते भी नहीं चाहते छिन भर रहना- जामें अमिको के बच्चो को पड़ता है दिन दिन भर रहना । गन्दी बदबू मे पलते हैं दुनिया के नागरिक सलौने, विथडो मे लिपटे, बढते हैं मानवता के ये मदु छौने । ये दुनिया में आये, हनने दुनिया में क्या देखा-भाला? उजियाले मे भी तो देखा इनने जीवन या अधियाला । माराव की निश्यता देखो, शोपण सहा, यातना भोगी, और बन गये बचपन से ही रोगो के रोगी। राक्रामक तिरली बढी, जिगर वट आया, ढाँचा हुआ सूख कर काटा, रोटो के टुवढे वे बदले इन्हें मिला चाटे पर चाटा नालदार यूटो के नीचे रीदा गया मस्त मानवपन, धन, बल, पैदा करने वाला स्वय रह गया, निल नियन। हम निपपाया जनमक ५६०