पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४९२

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यह कैसा विधान? रे मानय, वह कैसी विडम्बना नय की? अरे पराजित, अब भी क्या है बहुत दूर वह घडी प्रलय की। श्री गणेश बुटोर, कानपुर १४ सितम्बर १९३७, राति २ बजे एक बार तो देख एक बार तो देख, अरे जग मेरी डण्डा-वेटो, एक वार तो देख क्ट गयो है यह गेरी एडी, टेढी मेढी यह मदमाती मेरी चाल निहार, झन झन-झन-झन करता है हम मम्ता का ससार, गुर्यते झन्नाते फिरते है य मेरे और ओ जग, जरा देख तो है याँ कमे विक्ट दिलर । यहाँ बेटियो की उटती है बर मार हिलोर, वैरण और अडगडो म, चमार में, नारा और, झन झग-यन एन वी यह जीवन दाब माहन टेक- बार वार उठ-उठ आती है या ही माएर, सुग ले, वान लगाएर सुन रे ओ जग इसकी प्राज, अरे, देण तो इन बयुआया पंन्दा यही स्वराज । हम पिपायो अममक V11