पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४९३

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नही वेडियो को यह झम झन यह है जीवन मात्र, कॉप रहा है सुन कर जिसको क्षण क्षण शासन-तन्त्र, वे पशुबल' के अधिनायक क्या जान इसका तत्व । निज सर्वस्व होम भार ही है मिलता मुक्त निजत्व । डिस्ट्रिक्ट जेल, फैजावाद ३१ मपटवर १९३२ घट हलाहल पराशूत, पददलित, प्रताडित, भीषण अत्याचार विमर्दित, क्षण्डित, प्रण मण्डित, खण्डित लन, निरानन्द, पद-पद पर जित, मानव को मैं देख रहा हूँ आज सतत ठुकराये जाते, देख रहा हूँ ट्ट रहे है मानव मन के सारे नाते । देख रहा हूँ अनाचार का महा भयवर ताण्डय नर्तन, और सुन रहा हू मानव का पह विकराल पाशविक गजन । दुदमनीय दानवी लोला, यह दुरन्त बदरता जागी, आज सनी दौरात्म्य पर मे नर की नरता स्वय अभागी, आज सुना है मेरे साथी दण्डित, तादित, त्रस्त हुए है, मेरे सयंत भाव हृदय के सहसा अस्त-व्यस्त हुए है आज हृदय म उमड़ रहा है फिर से यह सोया कोचामल । पर मुझको पीना ही होगा अर की फिर मह यूंट हलाहल । कोष पारामार, बरला ११ जून १९४३ 11 हम विषपापी गनम के