पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४९६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

निर वरदायिनी, अवध भाग्यशालिनी, पधारी थी सनेह भरी, जागे थे तुम्हारे भाग ।। आज उठ आया है तुम्हारे हिये, ओ नवीन, क्या वही वात्सल्य ? क्या बहो अमद अनुराग ? तुम तो हो बधिक पुराने ओ नवीन, सुनो, तुम पे हैं ना जाने कितनी स्मृतियों के खून! तुमने तो कितने ही अपने मनोरथ ये, हठकर, बरबस हो डाले है भून - भून ॥ जीवन के प्रात में औ' जीवन को सन्ध्या में, रस कद मिला ? एक - सी हुई हैं दोनो जून क्या करें? पधारे आज शूल-हूल वनकर, वे जो ये तुम्हारे अति कोमल स्मृति-प्रसून 2 बढे चलो, अरे, मत पीछे मुड देखो आज, राम्धी आयी, होली औ' दिवाली भी तो आयेंगी, रस को लगेगी भोर, रास्मृतिया कसकेगी, आँखो मे अतीत की घटाएँ घोर छायगी, पर, तुम रुकना न एक क्षण को भी, बन्धु, मानवता देख तुम्हे क्षण-क्षण मिहायेगी, आँखें पोछती - सी, हिय-पासक टटोलती-सी जगती को करणा तुम्हारे गुण गायेगो । के द्रीय कारागार, बरेली थावणी पूर्णिमा, १५ अगस्त १९४३ हम विषपायी जनम के ५९