पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४९७

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रासो को सुध विटिया, मेरी मुहिया गो, गो मारा सार : गा। गुम्हारी या मंजुल गली मुकुमार' आ तुम पर्ने धागे वारी, गिरमा वार, ओम गुरुम - अधात पाली लघुटिपा विशाल, यह पावणो - पूर्णिमा पागगर मै आयो आज, गंग रिये गान गो माहाता या हग्नि समाज । माम, नेह-गरे पल - बादल, धरै विविध आधार, दौर-दोट पर - मण्डल पर डाल रहे जल्वार, हहर-हर करती लहराती ब्रही बायु गम्भीर, फुहियों के मिस पर रही है रिम दिम नभ यो पोर, ऐमे गगय ओर गत - सस्मृतियो रा चिरल दुगुल, यरवस, रागी-पूनग नायो पारा मे पय भूल । यहिना, यहा तुम्हारा भैमा, निपट अरक्षित, साधन हीन, छीन तन, बैठा क्येि हृदय दो-टूग, आज, तुम्हारे कुतुम - रोचन को स्मृति मे ये प्राण, ऐसे तडप रहे हैं, जैसे घायल हिरन अजाग, बनकर याद, लहरता है तब अगुलियो वा तार, यहा, आज आती है सुध राखी वारम्बार। उस दिन तुग आयी थी लेकर बुकुम, अक्षत, और- अपने हाथो रते भूत को रात्री की मृदु डोर, हम पिपपायी जनमक