पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४९८

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थाल भरे मेवे राग में थे लगे हुए ताम्सूल, रानो ये सस्मरण बने या मेरे हिय के शूल, यहाँ बनी हयकाडिया राखी, साती है ससार यहाँ, कई बहनो के भैया बैठे है मन - मार | हम सकान्ति - काल के प्राणी बदा नहीं सुख भोग, हमे क्या पता क्या होता है स्निग्ध - सुखद सयोग ? हम विछोह के पले, ख्व जाने है पूण वियोग घर उजार कर जेल बसाने का है हमको रोग- फिरभी, हा, हा, फिर भी, दिल ही तो है यह अनजान वरवस तड़प-ताप उट्टा करता है यह नादान । हिस्ट्रिपट जेल, जानाद मायणी पूणिमा १९.२ आज क्रान्ति का शख वज रहा आज दिटक्कर खड़ा हो गया विप्लब के पथ का यह राही, टेक रुकुटिया लगा देखने पौछे को यह क्रान्ति सिपाही, कितना वोइड, कितना भीषण, दुगम पथ यह ते कर आया कहाँ कहाँ का अमित अलिकथा निज सनो मे यह भर लाया इस विषपाया जनमक ४६७