पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४९९

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गित पाल पी, वर्तमान मो, भायो नो गुछ सोच रहा है, चित्तन मा सचित भाल से अपो अंग-गम पा रहा है। चरित चिन पट-सा आया है सर अतीत नपनो मे आगे, यह गत, जिसरी जुटे हुए हैं सामाजिक जीवन मे धागे विम्बित हुई रामणि व्यष्टि म औ' समष्टि मे व्यष्टि समायो, मानो यो विप्लवकारी ने अपनी सीमा आज गंवायी, यो वैयक्तिकता में झलकी गाना निखिल राष्ट्र को छाया, गानो दपण बन आयी है विप्लवकारी नी कृश काया। राप्त लक्ष वे ग्राम देश के वे सब मोट्यावधि नर नारी- इस पानी के दृग् मे मानो चमक ठे है बारी-बारी, ऐसे ग्राम, भग है जिनमें अति अगाध अज्ञान मयकर, मंडराती है जहा भूख की उत्क्ट ज्वालाएं प्रयकर, इस विषयावी जनमक