पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५०

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अपनो सजला आँखे- करो निजला, और भरो उनमे- चे दृढ निश्चय-किरणे- हर मान्त जो विकृति-नियति-सृति का । कालकूट पी कर ही धूजटि बन आये अशक को शका स्वकृत हलाहल पी कर और नहीं, तुम बनो शम्भु-किंधार हो । श्री गणेश शुटीर, कानपुर २२ जून १९५५ दुराव रहस्प है ऐसा, जिसे तुम्हारे विश्वासी जनमी तुमको नहीं बताते, तो तुमको यो हो इससे अचरज' सब जन अपनी खिचडी- पका रहे हैं अपने चूल्हे पर, तुम्हे या पड़ी है जो- देखो दाने पो हैं कि कच्चे? हम विपपायी जनम फ