पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५१

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भाग्य सराहो अपने कि तुम रखे जाते हो दूर सदा, विपद मोल क्यो लोगे? गुप्त मन्त्रणा एक यात्रणा है। 'अपनी-अपनी ढपली, अपना-अपना राग, गीत अपना,' नियम नही यह दूपित यदि न बने जन क्षुद्र स्वाथ केन्द्रित । स्वय बजाने ते ढप ठीक लाल-गति सीखेगा मानव, क्या गति होगी उसकी- तुम्ही बजाते रहे होल-तप जो' और विना आलापे- अपना राग, सिद्ध स्वर कैरो हो? गाओ तुम जो चाहो, पर, अन्यो के पाठ न सुधरेगे । अच्छा है, वे तुमसे निज सम्बन्धित बात नहीं कहते, परो प्रवासा सनरी दि है आत्म विदवाम उन्ह इतना । हा, पर, एक सटा है कि जर गोपनीयता रहे इतनी-- दम विषपाया जनमक २८