पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५०१

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बनी हुई हैं टेढी - मेठी लोक लगाडियो की भी, जिन पर झुक आयी हैं वाले घाटी और शादियानी भी। ग्राम नहीं है, ये सदियो पी आहे. पुजीभूत मानय की वेदना, व्यथाएँ, बनकर ग्राम प्रसूत हुई है, रख श्वास, धरती माता का मानो उभर उठा है सब तन मानो ये हैं चिह्न कि क्षण में होगा भीषणतम भूकम्पन, अपनी गहरी लम्बी सारो क्व तवा रोकेगी भू माता 2 खोया हुआ रहेगा नब तक यह मानव निज भाग्य विधाता' विखनीजगति, विगदि यह फित्तनी, मित्तनो जडता और विषमता। है बितनी विडम्बना इतमे, हाग, यहाँ कितनी अक्षमता । इन पर छाये पीर, पसत्र, भूत, प्रेत, पीपल औ' पत्थर, एवं छीक से ही होते हैं, ये मानद सभीत अति सत्वर, कम पिपाय जनमक HU