पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५०४

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चमक सके है इसके हग मै यदिज्वलन्त जागृति ज्योतिष्कण,- तो फिर यह विद्रोह-प्रचारक क्यो निराश हो । क्यो हो उन्मन' उन ग्रामो मे, जिनगे जीवन नित प्रति कीचड में सडता है,- वहा, जहा दिन रात मृत्यु का काटा जीवन में गडता है. वहाँ, जहा अज्ञान तमिला इतनी शतियो से छायी है,- जहाँ अन्धविन्यास - भावना पोत रही तम को स्याही है, अरे, वहाँ के कुछ सपूत, जो जूझ रहे हैं समरागण मे। तब फिर,पया चिन्ता कैसाभयो क्या आये शैयित्य चरण मे। जो निकले है घर से करने अभिनव मानवता का सिरजन,- जो निकले है घर से, गढ़ने मानब का नव मामाजिक-तन,- उन्हे मिला है महत् कम का यह सदेश कठोर, भयकर । क्रान्ति वरण करने वालो, है- अति प्रलयकर क्रान्ति म्ययपर। इग विषपायो जनम क. ६० ४०३