पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५०५

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युशल विप्लवी शब्द-ताल में नहीं फैगेगी क्रान्ति मुमारी, पुछ उच्छिष्ट मन्त्र जपने से हो म सगी क्रान्ति तुम्हारी ।। वोर क्रान्तिकारी मुसकाया सुनकर महाकाश - वाणी यह, और गरज उट्ठा कि सत्य ही है दुल्ह मानव प्राणी यह, अपना, अपने इतिहासो का, करके अति मन्थन सपरिश्रम, निज दुरुहता सरल बनाने का करता है सतत उपक्रम एक सूत्र में अटकाता है अपनी सकल ऐतिहासिक गति, किन्तु, हारफर रह जाती है उसको प्रबल चमत्कारिक मति । 1 यह श्रेणी मघर्ष मान ही मानत्र का इतिहास नहीं है, यह गदावादिता मात्र ही जन का वामोच्छ्वास नहीं है, निपट आधिभौतिक द्वन्द्वात्मक विश्व नियम-गवला नहीं है, क्या जडता बन सकी निरन्तर जीवन-कटि-मेखना कही है? ४५३ हम पियपायी पनाम के