पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५०६

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तोतर-फन्दो में न अटेगो यह बहुमुखी भानवो लोला, इक तूंटी पर अटक सकेगा से जन इतिहाए होला? जिन-जिन ने मानव को समझा सवेदन बी उन-उन को बलवत्ती बुद्धि में यहाँ सदा ही ठोकर सायो, जो समझे कि मनुज-लोलाएं अर्थवादिता की हैं माया,- जो समझे कि मनुज की कृतिया हैं वस कामुकता की छाया जो समझे कि मनुग है येवल निपट आधिभौतिक सुखवादी, उनमे सम्प्रदायवादो भ मानव को सुबुद्धि उलझा दो। भाज कान्ति का शख बज रहा > क्यो न राकुचितता जन त्यागें? इयो न आज मत-मत्तान्तरो के लघु विचार जन मन से भागें ? इस मानव समाज का अभिनय सृजन-भार ले आमे जो जन,- उनके नयनो म क्यो छाये मतवादो का दुदम तम धन हम पिपायी जनम के ? है।