पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५०७

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क्रान्ति वरण करने वाले सत्र पयो न वढं मिल-जुलकर आगे? क्यो न आज मानव हृदयो में अनिगिता नूतम लो जागे? हा, आवश्यक है विप्लव के लिए सत्व-सिद्धान्त-समुच्चय, पर, वह ऐसा क्यो हो जिसवा शताब्दियां न कर सकी निणय जड चेतन की, आत्म-तत्त्व की, अहापोह करे क्यो कोई इस चिन्तन म मानव ने युग युग की दिन-राते खोयो। जन-जागृति का भार पड़ा है आज क्रान्तिकारी के सिर पर, बठिन, दुरुह समस्याओ का तब वह क्यो देखे फिर-फिरकर' आस्तिक जन भी तो होते है अति प्रलयकर विप्लवकारी, औ, अध्यादी भी होते ह अतिविमगल क्रान्ति ब्वज बारी, तब फिर, फ्यो आपरा का झगडा . यो आपस नी सँचातानी। सामों का दुरपयोग क्यो' तर श्यो यह इतनी मनमानी हम रिपपामा सनम ४.