पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५०८

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आज कह रहा हूँ मैं, सुन लो, अहो क्रान्तिकारी मेरे जन,- मिट्टी में मिल जाओगे तुम यदिन किये परिवर्तित निज गन। आग तुम्हारे ऊपर क्तिना है महान दायित्व, निहारो। तुम्हे विनाश और सिरजन का करना है यह काज, विचारो। इन चालीस कोटि मुरदो म प्राण फूंकने तुम आये हो, नवल जागरण और सगठन का सन्देश तुम्ही लाये हो, अपनी एक कतार बना लो दृढ निश्चयी, बढी तुम आगे, ऐसे बढो कि तुम्हे देखकर यह शताब्दियो का भय भागे। यया जीवन क्या मौत, बहादुर । धूप छाह बया? क्या दिन-रातें। क्या प्रकाश औ' मन्धनार यह 2 दुख सुख की अब क्या ये बातें। तात्कालिम अराफलता क्या है है यह तो बस जानी-जानी । लखो दूर पर, शान्ति सफलता विहंस रही है चिर करयाणी । हम पिपपाया जनम 6 gos