पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५०९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

ये लातो देहात तुम्हार, अरे रोडो तय जनमाण, जाह रहे है पथ तुम्हारा, और मार रहे हैं आवाहन । दोपण की रूपलपा रही है मह जिहा शोणित की प्यासी, रगतरत्ध किटविटा रही है उसकी आ सत्यानासी, शोषण-मुख म तड़प रहे हैं अरे तुम्हारे कोटि-पोटि मन, दो स देवा बने शत-सात जन, उनका एक-एम शोणितरण कहो आज जागो, हे जागी, जागो हे सोये प्रलपकर, जागो मेरे भूतनाथ जन, जागो हे मेरे शिव शकर ।। 1 1 जागो, एक कतार बना लो, जीभ खीच लो इस दोषण की, तोडो डाडे, करो इति श्री तुम मिलकर निज उठीपण फी, करो सृजन अभिनय जगती का नव नय सामाजिक सहति का, मानब हो विमुक्त, ऐसा हो शुद्ध प्रयोग तुम्हारी मति का, हम पिपायी जनमक १७८