पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५२१

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माना कि लग रहा है ऐगा, मानो प्रकाश है बहुत दूर, सो यथा इस होगा तम का गढ़ चूर-चूर? हम क्यो न करें विश्वास कि यह टिक नहीं सकेगा तम अपार ? हम महा प्राण, हम इक उठान हम विद्रोही, हम दुनिवार । सिंहो अपने ये मव वौहर अगल, अपने ये सब ॐने इक दिन निश्चय हिल डोलने, की-सी करको ! उस दिन हम विस्मित देखेंगे यह निविड तिमिर होते विलीन, उस दिन हम सस्मित देखेंगे हम हे अदीन, हम शक्ति-पीन। तडपेंगे। उम दिन दुम्दप्नो की स्मृति मा होगा वधिको ना भीम भार उम दिवस कहेगा जग हमसे तुम विद्रोही, तुम दुनिधार। हम क्यो न करें विदयास किये नगे-भूखे भौ धुएँ के छितरे बादल पडयेंगे, हाँ ये पडरेंगे। हम विपराया जनम के 29