पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५२२

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ये सिरायेगे, जम कर होगे ये भो संयुत, मो बिजलियाँ गिरायेगे, अपने नीचे की धरती का मो सन्ताप ये भी तो इक दिन समझेंगे अपने भूले सव स्वाधिकार, उस दिन ये सब कह उठेंगे हम विद्रोही, हम दुनिवार । हम कहते हैं भीषण स्वर से मत सोच करो, मत सोच कगे, लख वर्तमान नैराश्य अगम, अपने हिय को मत पोथ करो, तुम बहुदर्शी, तुम क्रान्ति-पयो, तुम जागरफ, तुम गुडाकेश, तुमको कर सका कभी विचलित क्या गेह-मोह ? क्या शोव क्लेश? देखी है तुमने क्षणिया जीत, अविचल सह जाओ क्षणिक हार तुम विष्लय - रण-चण्डिका-जनक, तुम विद्रोही, तुम दुनिवार ।। सिस्ट्रिपट जेल, जमाव १२ अप्रैल १९४३ 1 हम विषपायी जनम के एम