पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५२३

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सुनो, सुनो श्री सोने वालो। मुनो, मुनो ओ गाने पालो, जागृति के ये भैरव स्वर - जिनमे बाज तरगित है पह अपना अति विस्तृत अभ्यर। म्वय प्रलय - वीणा अपने हो आप अनाहत मूंज उठी, और तन गयो महाकाल की लय - उद्भय - थारी भृकुटो, आज वायु की प्रति तरंग में अमित स्वये यी भोर जुटी, अब भी क्या न स्थर भरित होगे सुप्त तुम्हारे कण - कुहर? सुनो, सुनो ओ सोने दालो जागृति के ये भैरव स्वर 1 वीणा घजी, स्वरावलि उभरी, दशो दिशाएँ नाच उठी, अम्बर से पृथियो तक सहसा विप्लव-स्वर को आच उठो, सभी जातियाँ इस प्रकाश में अपनो भावी पाच उठी, तुम केपे हो जो कि आज भी नहीं रहे हो रच सिहर ? सुनो मुनो ओ सोने थालो, जागृत्ति के ये भैरव - स्वर। १९० हम विपपायो अनम के