पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

ये पहाड, खेत और खलिहान तुम्हारे, जगल, उपवन- ये नदियां, ये ताल सरोवर, गाते है विप्लव - गायन । उत्तर में गा रहा हिमाचल, दक्षिण मे वह सिन्धु गहन, सभी गा रहे है लो आया यह लोहित जागरण सुनो, सुनो ओ सोने वालो, जागृति के ये भैरव - स्वर । गगा गाती कल-कल ध्वनि मे भावी के कल को बाते, यमुना गाती है कल-कल कर कि अब गयो कल की रातें, साबरमती गरज कर बोली अब केसो निशि को पाते। दिन आया, अपना दिन आया, यो गाती है लडर - लहर, सुनो - सुनो, थी सोने बालो, जागृति के ये भैरव - स्वर ! उत्तर से दक्खिन, पच्छिम तक तुम एक, अरे, भेद-भाव से परे एक ही रहो तुम्हारी टेक, अरे, एक देश है, एक प्राण तुम, तुम हो नही अनेर, अरे । म विषपाया जनम के