पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५२५

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खोलो निग लोचन, देखो यह पिलो एक्ता ज्योति प्रसर, सुनो, सुनो मो सोने वाला, जागृति के ये भैरव स्वर। 2 2 इस क्षण भी यदि तुम न उठ सके तो इतिहास यहेगा वया सोचो तो, यह भाग्य तुम्हारा, चिर उपहास सहेगा, नया ? यह अनुपूल पवन या झोका फिर भी कभी बहेगा क्या अपने हाथो क्यो खोदो हो तुम अपनी ही आज तर? सुनो, सुनो ओ सोने वालो, जागृति के यह भैरव स्पर। शातियो से नदिया इस भू की गरज रही है क्रोध - भरो। शतियो से सागर की लहरें गरज रही प्रतिशोध - भरौ। यह वृक्षा पृथिवी माता भी गरज रही है, गोद - भरी। वस, तुम ही भूले हो अपनी विक्ट गजना प्रलयकर, गरजो, सोने यालो, गाओ, जागृति के ये भैरव स्वर । हम निवपाषा पममक