पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५३०

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उलटी-सीधी तो बहती ही है जीवन मे वायु, इराको क्यो हो चिता, यदि है निश्चल तब आदश? जीवन नंदुवे मे है अगणित नव रगो का मेल, उत्तम रंग-बिरगे रग-बिरगी बेल, क्यो चाहो कि बने इक-रंग यह बह-रग वितान? सदा रहेगा जीवन का तो रंग-बिरगा जेल । 11 1 जोवन तो प्रपूण होता है वनकर नाना रूप, 'एकोऽह, बहुस्माम यही है जीवन-मन्त्र अनूप द्वैत रूप धारण करता है जब चेतन अद्वैत,- तव तो आयेगी ही सम्मुख कुछ छाया, कुछ धूप । अपने, अन्य साथियो के, लम निज से मिन विचार,- वयो अकुलाते हो होते ही क्यो विह्वल तुम, यार? जीवन का समुद्र-मन्थन तो होगा ही दिन-रैन, उससे कभी गरल निकलेगा, कभी अमो-रन धार पेटीय कारागार, घरेलो २५ अप्रैल १९४४ 11 कमला नेहरू की स्मृति मे ? देवि, इतने ही दिनो फा यया यहा आवास था यह कौन जल्दो यो ? अभी तो शेप कुछ गधुमाम था यह । हग विषपायी वानम के ६३