पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५३७

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अपने इतिहाग पुरातन श तुम स्मरण करो वह म्वण प्रहर, अगने अन्यर में अपने अतीत की ज्योति लहर 1 लहरायो थो भारत ने जन, तुम भूले क्या वे उज्ज्वल मगलमय क्षण? जर प्रथम यज्ञ को सवाला से जगमगा उठे थे रज-वण-कण ! थे तुम्ही कि जिनने पूछा था 'पास्मै देवाय ।' पणित होकर। ये तुम्ही दि जिनने गाये थे, 'मोऽह' के स्वर निज को सोकर ! योलो तो, है मिसका अतीत इतना उज्ज्वल, इतना हिय - हर लहरी थी तब अम्बर में ही चिर निग्मयता री ज्योति - लहर। वै महामत्र गुजित है जिनका अमर माद, गढ तत्वदी योगी, सिद्ध कपिल, गौत्तम, फगाद, ये महाबोर, ये पुट बुद्ध, मानवता के वे राम पाता, उनको मा वो प्यारी जननी है यही वृद्ध भारत हम विपपाया नमक १०४