पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५३८

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है यही तुम्हारी मां, यह लख क्या तुम उठते हो नहो सिहर ? लहराओ अपने अम्बर मे अपने अतीत को ज्योति • लहर। ये व्यासदेव, वे वाल्मीकि, वे भारवि, वे भवभूति करुण, धन्वन्तरि, क्षपणक, अमरसिंह, वे कालिदास नित तरुण अरुण, बैताल वे घटकर्पर, ज्योतिष आचार्य वराह मिहिर, ये नागार्जुन, भास्कराचार्य, जिनने मेटा अज्ञान-तिमिर, वे मध्य, और ये रामानुज, ये दिग्गज छाकर, अब भी जग के नौलाम्बर में लहराती जिनकी ज्योति - सहर । के बलभ, - मागव ने इस भू पर खोले सबसे पहले निज हिय - लोचन, औ' इमो नम तले तो उसने मन्देश दिया भव भय - मोधन, सबसे पहले इस भू पर ही चमकी किरणें ज्ञानोदय की, ये भवति-न भवति-व्यधाएँ सन मिट गयी मनुज के साथ की, हम विपपायी जनम के ६४