पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५४०

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आकाश तुम्हारा यह विशाल यातियो कापा है हहर-हहर, पर, रही अकम्पित सदा काल तव प्रखर शान को ज्योति-लहर । 1 तुमने देखे देखे कितने उद्भव कितने लय, कितने हो विप्लव इतिहास - प्रभजन तुमको कर कर सके विडोलित औ' विक्लव । तुम तूफानो से खेले हो, तुम महाक्रान्तियो के सूक्ष तव भू विलास में नारा-सृजन, आदश अलख के तुम द्रष्टा विस्तृत भू-मण्डल भर में तव सास्कृतिक ध्वजा है रहो फहर । है लहर रही ना - मण्डल में तव शुभ अतीत को ज्योति-लहर । शत्तियो नेली अंगडाई तो तुम बोलें एक निमेप हुआ, जब युग बदले तो तुम बोले लो इक घटिना का शेष हुआ। मन्चस्तर की गणना से भी कब शेपमा तव दिवस मान' का थके तुम्हारे पर अहो' कब टूटा तव यल्पना - याग? हम विपपायो जनम के ५.३