पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५४१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

तुम आदि रहित, तुम अन्त हीन तुम चिर अकाल, तुम प्रलयकार, तब अम्बर मै है लहर रही सन्तत अतीत की ज्योति लहर । ये महाकाल, पाहुन वन तव गृह आये है ये महाकाश, इन विकट अतिथियो को तुमने कर दिया निराश्रित औ' निराश आकाश तुम्हारा गोपद है, है याल तुम्हारा एर चरण । युग-युग के ये परिवत्तन तो हैं केवल तब नि श्यास- सरण। नैराश्य वहाँ ? औदास्य कहा' है यहा कहा यह तिमिर गहर है लहर रही तव अम्बर में सन्तत अतीत की ज्योति-लहर। केन्द्रीय कारागार, बरेली २८ दिसम्बर १९४३ 2 ओ तुम मेरे प्यारे जवान । ओ तुम मेरे प्यारे जवान तुम मेरे गौरव मूर्तिमान । हम रिपाया जनमक