पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५४३

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तुम कुद गभीर विरोध - नाद, तुमको भोपण लोकापवाद- कव चलित कर सका, बोलो तो? तव पग मे आयी की थकान ? तुम मेरे गौरव मूर्तिमान । सर्यापण को उमग हिम भर, तुम सिर ले चले हथेली पर, दुन्दुभी स्वग को गूंज उठी, नभ में खायो बलिदान - तान, तुम मेरे गौरव मूर्तिमान ।। तब बलिदानी को देख लडी, शियि को गाथा भी मद पटी, तव प्राणदान के निकट पडा- फोका दधीचि का अस्थि दान, तुम मेरे गौरव मूत्तिमान । लखकर तब कमटता अषित, है यमयोग भी स्वय चवित, लय तुम्हें अलिप्त, अनग-भाव- है स्वय प्रगत तब सानिधान, तुम मेरे गौरव मूर्तिमान । सकुनित ग्याय की, यश, धन की लोपिरतापी, या जीवन बी- यह चाह कभी व्यापो न तुम्ह. तुम सदा अनिगित, मावधान, तुम मेरे गौरव मूर्तिमान । हम विषपाचा जनम ५१.