पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५४४

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जब मेरे नभ मे जाये धन, अवरुद्ध हुई जब ज्योति-किरण, तब बनकर विवाट प्रभजन तुम चमनाने आये भासमान, तुम मेरे गौरव मृत्तिमान अपनी धुन मे वन वन डोले, रण मै जूझे तुम लिन बोले, तव बलि-वेदी को ज्वाला से, हो गया यिनिर्मित नव-विहान, तुम मेरे गौरव मृत्तिमान । ने द्रीय कारागार, वरलो ६ फरवरी १९४५ अरे तुम हो काल के भी काल फोन कहता है कि तुमको सा सरेगा पाल? अरे तुम हो काल के भी काल अति विकराल' साल का सब घनुप, रिषदी है घनुप बी डोर, पगु-विकम्पन मे मिहरती मृजन नाश-हिरोर। तुग प्रबल दियाल-धनु-धारी नुय या वीर, तुम पलाते हो मा चिर गाना रे तौर । दम विपपायी जनम के 91