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? क्या निगाहेगा तुम्हारा, यह क्षणिक आसक ? पया समझते हो कि होगे नष्ट तुग अकलक यह निपट आतक भी है भौति-ओत - प्रोत्त। और तुम तुम हो चिरन्तन अभयता के सोत ।। एक क्षण को भी न सोचो कि तुम होगे नष्ट, तुम अनवर हो। तुम्हारा भाग्य है सुस्पष्ट । 7 चिर विजय दामी तुम्हारी, तुम अयो उबूल, क्यो बनो हताश तुम, लय माग निज अवरुद्ध फूंक से तुमने उडायी भूधरी को पात, और तुमने खीच फेके पाल के भी दात, क्या करेंगा यह विचारा तनिक-सा अवरोप? जानता है जग तुम्हारा है भयकर क्रोध । जब करोगे शोध सुम, तब आयेगा भूडोल, नाप उठेंगे सभी भूगोल और खगोल, गाश भी लपटें उठेगी गगन - मण्डल थीच, भाग होगी ये अमामालिन प्रथाएँ नीच । यौ' एघारेगा गगन फर अग्नि से सुस्नान, मत बनो गत आशा तुम ही विर अनात, महान् केटीय कारागार, घरेगे ९परवरी १९४४ १ ५१२ हम रिपपासा नमक