पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५४६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

ये आये। ये आये। ये अपये, ये आये, भम्मक ये आये, ये आये। लाज गरजने, धयर करते थे नभ में मंडराये, भस्मक ये आमै, ये आये। अरे, कौन कहता है इनको वायुयान नभचारी ? किसने कहा हुई है मानव-क्रीडा मगन-विहारी? हरण-मरण के पख लगाये भीषण मृत्यु पधारी । आज, जगत् में त्राहि-त्राहि के कारण, भीत स्वर छाये । भस्मक ये आये, ये माये ॥ पवन-यान हैं अन्तरिक्ष मे, है शतनिया नीचे, नर क्या करे ? श्रवण निज मूंदे ? या निज लोचन भीचे? इस प्रज्वलित जनोद्यम-रथ को कैसे कोई खीचे? सर्वनाश ने आज चतुर्दिक् अगारे वरसाये, भस्मक ये आये, ये आये ॥ क्या मानव की प्रगति-कथा की इति का अब यह अच है श्या उसके लीलान्त-काल का यह उपहास अकथ है। लगता हिम हारा-सा मानव, उसका तन सस्लप है। उसने अपने हाथो अपनी इति के साज सजाये। भम्मक ये आये, ये आये। पेद्रीय कारागार, बरेली १७ जुलाई १९४३ ? ५३ हम विषपायी जनमक ६५