पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५५१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

देखो, पर, चमके तुम जग - नयनो मे जागृति-श्रुति-कण वन अरे गुप्त 1 कृतज्ञ इतिहास आज लापा है ये सस्मरण-फूल, कर रहा समुद वह सशोधित अपने विवरण की क्षणिक भूल । मानवता का यह प्रगति - चक्र तुम बिन फार धूमा एक याम ? मेरे साथी, अज्ञात तुमको मेरे शत - शत प्रणाम । नाम, 2 तुम्ही बडे लेने सुक थे तुम्ही न, जिनने सर्व प्रथम विद्रोहो का सन्देश 7 मुना थे तुम्ही न, जिनने जोवन मे काण्टपित मार्ग का बलेश चुना धे इस महा निष्क्रमण का प्रसाद, तुमको न चलित हर मका सभी विद्वानों का व्यवहार - बाद, पर पो यण्टय - कोणता अमित, योलो, तुमको कन डरा सको। मग मी बीहट - सो अन तना योला, तुमयो पर हरा सकी। यार, उपतापर, पातर हो, सुम पर पिरलाय, 'अरे राम' गये, वीर, तुम मेरे शन - शत प्रणाम । इम निषापा मनमक तुम तो बटते हो 41