पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५५३

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तुम बढे, मिटाने मानव के मन का युग - युम का भेद - खेद, तालालियः फल को आशा से काय चलित हुए तुम पूष काम ? थे निस्पृह कर्म उपाराफ तुम, तुमको मेरे शत - दात प्रणाम । केन्द्रीय मारागार, बरेली ३.मई १९४३ नरक के कोडे कुछ लोग नरक के कोडे है, वे नायर है, दुर्वल मन है, जो नारी पर विप वमन करें, ऐसे भी इस जग मे जन है। जो नारो को चल वाहकर हर घडी फोमते रहते है,- जो नारी की कामुकता की गाथा ही अह निशि कहते है,- के है पाखण्डी कामुक, जिनको स्त्री ने ठुकराया है, जिनके पापो से मारी ने अपने को कभी वाया है। वे ही भर बनकर कलाकार करते नारी पर फन-फन है, वे लोग नरक के मोटे है, वे कायर है, दुल मन है। 2 जो नारी में कामुकता ही देखें वे भी फ्या मानव है ये सो है बस चाण्डाल अघम, वे तो बस पूरे दानव हैं । उनको नारी ने दी छोपर,इससे चिढ है उनके मन मे, औ चले लगाने वालिस वे नारी के चरित मुहावन मै । दग विषपाया जनम के १२०