पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५५४

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थे पण्ढ सममते हैं कि हमी कर रहे कला का प्रणयन हैं, जो नारो पर विप-वमन करे, विक है । ऐसे भी जग-जन है । मे पामर भूल गये हैं क्या, ये भी नारी के जाये है ? अपने शरीर-मन-प्राण सभी इनने नारी से पाये है। नारो के दिन तो थे ये सब कुछ मूत्र कीट का गुच्छ, अहो । नर बन निकले, तो नारी पर करते प्रहार ये तुच्छ, अहा } ये है. कृतघ्न, ये है कायर, ये निरे बुद्धि के वामन है, ये लोग नया के कोडे है, दुल मन है, दुवल तन है ! नारी ने ठुकराया, तो बच, ये गढते एक कहानी है, जिसमे निज को ये दिसलाते रायमी और विज्ञानी ह । जो कमी भाग्य में नहीं बदा, उराको ही ये दिखलाते हैं, ये घोघे, निज बल्पित तप से नारी का हिय पिघलाते है। फिर उसको गाली देते हैं, यो रामलाते अपना मन हैं, ये लोग नरक के कोडे हैं, वे कायर है, दुवल तन हैं। असफल, फलुपित वासना अयन गयो थि इनके मन मी, ये लगे कोसने नारी को, सुघ भूले ये भी के स्तन की। प्रत्यक्ष रुप म नारी को कर मके न कभी पराजित ने, सो कलम कुल्हाडे से उसको करते है खण्ड-खण्ड नित ये' निज माताओ का यो हो क्या ये पामर परते तर्पण हैं। ये पण्ड, नरक के नोडे हैं, ये यायर हैं दुल मत हैं। हम पिपायरी जनमक ५२१