पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५५५

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HP ऐ बोनो, नारी बो देखो, वह पत्नी है, वह माता है। बह हिय को कणिका बेटो है, वह जाग को भाग्य विधाता है यह महाशक्ति का मूर्त स्प, वह परम भक्ति कल्याणमयी, वह मृजन-धाम क्षण की पावन सुपर ऊपा मुसकानमयी, ओ माग भ्रष्ट तुम कलाकार, क्या बन्द तुम्हारे लोचन है 7 क्यो हृदय तुम्हारे बलुपित है । यो पित्त लब अभिव्यजन हैं ? पहते हो नारी चल है पर तुम क्या हो । पुछ बोलो तो? अपने हो पल्डे पर, आओ, अपने मन को कुछ तोलो तो' यो ललित कलाश्रय लेकर तुम, यो फैलाते अविचार, अरे? इस पाचन देव धुनी में तुम मयो छोटी गन्दी घार, अरें ? है नही, अरे, यह ललित कला, यह तो मल मूत्र विवेचन है यह खूब समझ लो तुम-जैसे मानवता के वेरी जा है ।। मानवता की मत दो घोग्वा अपने को तुम मत धोखा दो। तुम अपने मौन-पराजय को यो भुलने का मत मौका दो । भारी है चिर प्रेरणाममी, ारी है पावर स्नेह रंग, इस पूण पुरातन मिरसन में नारी ही है नित नय, अनूप । जिन ने जग को रसन्दान दिया, वे नारी के रोचन-कण है जो कामर नारी को कोमें दे पामर हैं, दुशल मन है । पद्वीप कामगार पर १७मिर १४ १२ दम विपरापा नमक