पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५६१

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फिर, यदि आज चुने हैं याटि तो द पपो अमुलापे मन मै? समप - यूज पर ही ओ निष, दू गम्मिलित हुगा है रण मे। है तेरा चियेदित, तेरे रण पुण्य - प्रणोदक, तरा रण जन - मगलबारी, मेग जीउन नित्य अभय - सनारी, रही है यह मानवता आतुरता से तेरो गति - विधि, क्षण - क्षण तुझे निहार रहे है, ये सब सूढे मूधर, पारिधि, तेरा ही मुँह देख रहे हैं धरती के सब पाहन, जगल, उझप निहार रहे हैं तुक्षको सूप, द्र, नक्षय लगण्डला प्रगति -प्रेरणा चित्तातुर - सो देख रही है तेरे पग - ठग, और विनास निहार रहा है ऊँचा-नोचा मग, अरे, हुई है तुझमे पेद्रित, इस विसृष्टि की राव आशाएँ, क्षम हो तो ऊर्ध्व-गमन की अभिलाषाएँ, हग विषयी जनमक ५२६