पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५६७

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de आज मुक्ति के अरमागो ने मिलकर यो ललकारी है ओ सब सोने वालो, जामो, गूंज रहा नवफारा फैसी रात ? कहाँ के मपने यह गव प्रात पधारा है। ऐसे हंसते - से प्रभात का तुम करने सम्मान, उठो, उठी ओ नगो भूसो, ओ मजदूर किमान, उठो, कन्धो पर भरे,- ले प्राणी के फूल करो मे, हिय में अमित उमग भरे,- ले विजय-पताका, नयनो मे रण-रग नयल प्रात के स्वागत को तुम चलो वीर निशाक, अरे, क्या भय भया डर? आज झिझक क्या? ओ मानस सतान उठो, उठो ओ नगो भूखो, ओ मजदूर किसान, उठो। उठो। भाये है, शतियो आदा तुम्हारे भूत एप धर नव समाज के नवल सुजन का नमा संदेमा लाये हैं, दिगि दिशि में समता स्थापन के अभिनव स्वर छाये है, 410 हम निपपायो जनम के