पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५६८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

तुम करने महाक्रान्ति के नम विधान हित बलिदान उठो, उठो, उठो ओ नगो भूखो, ओ मजदूर, किसान, उठो । अब न आ सके रात भयकर ऐसा कुछ गति - चक्र चले, फिर न अंधेरा छाये जग में चाल न कोई चक्र चल, चमके स्वतन्त्रता का सूरज, परवशता अन टले, शोपण के शासन की इति हो, तुम ऐसा प्रण ठान, उठो, उठो, उठो ओ नगो भूसो ओ मजदुर किसान, उठो। सभी ओर तव भुज-बल अकित, पृथिवी देखो, हल देखा, निखिल विश्व के यन्त तन्न भे तुम अपना कौशल देखो, भू-मण्डल के सिरजन में तुम अपनी चहल-पहल ज्योति जमाते, गीति भगाते, ओ तुम शक्ति-निधान, उठो, उठो, उठो औ नगो भूखो, ओ मजदूर किसान, उठो। हम विषपायो जनमक ५३१ देवो,