पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५६९

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दान तुमो पोपर गरल, जगत को- मधुरामृत या दिया, मौतल हुआ जगत, जब तुमने प्रलय-अनि या पान किया। मरण-वरण कर तुमने मन को नय जोवन, नय प्राण, दिया, बहुत पिया विप, अमृत स्वागी वीर महान्, उठो, उठो, उठा भो नगा भूखा, ओ मजदूर किसान, उठो। पियो मन धधक, सुलगा दो निज अन्तवाला, विकट लपट लम्बी होवे भस्म दासता, दोपण, सी यह होली भभके। हो जाओ तुम मुमत, कि विहँस ये सब तारागण दुनिवार तुम, सदा मुक्त, तुम, करो विजय के गान उठो, उटो, उठा ओ नगो भूखो, मजदुर किसान, उठो। आ मा निषा साहरा है कि रख सके तुमको मो विर वचन स्वयं मुषित ही नाच रही हे सदा तुम्हारे स्पन्दन मे। परेर इम विषपाय। जनम