पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५७०

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तुमर्म विप्लव अन्तहित है, जैसे ज्वाला चदन मे, टेर रहा है तुम्ह विश्व यह ओ जग के बलवान, उठो, उठो ओ नगो भूखो, ओ मजदूर किसान, रद्रीय कारागार, बरेला २६ जुलाई १९४३ उठो। के परी धधक उठ निगड - बद्ध तन सप तप्त जटिल शृसलाएं ये टूटें, असम्भावनाओ की दृढता रह - रह करके छक्के छूटें, सिंह - द्वार मरण -जीवन का आज मुक्त हो जाये, सजनी आज उगा दे सूप नया तू हो अब शेष अमा की रजनी। कर दे भस्म शृखलाओ की ये सर कडिया न्यारी-न्यारी। अरी, भयक उ०, धक धक पर गहानाश की भट्टी प्यारी हम विषपाया नमक