पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५७

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मैने तोडा जो फुरल कुसुम तो क्या देखा? उसके अन्तर में एक भयकर तक्षक है। मैने सोचा मैने काय ऋपि अपमान किया? जो मुझको मिला परीक्षित जीवन-भक्षक है? में कितना हूँ साभिभूत, कुछ मत पूछो, में लहराता ही रहता हूँ प्रत्येक घडी औ' तक्षक मुझसे लिपटे बैठा जमे मे हूँ चन्दन गी कोई एक छडी। घक हारे बीन वजा कर, सावर पढ-पढ कर, गारडी अनेको राप मन्त्र तत्त्वज्ञानी पर, यह तक्षक है किन टस से मस हुआ रच, उसको चालित न कर सका अभिमन्त्रित पानी। नय की परिभाषा यांची और अनय को भी दिन - रात, वैट, एकासन, बडे परिश्रम से, जितना ही पना, बढ़ गयी उलझन उतनी ही, मन मुक्त नहीं हो सका विचारो के भ्रम से। स्थिर बैठ, रात को झिल-मिल तारो के नीचे,- मैं रमा पूछने गय कि प्रदन पर प्रश्न निरे,- तर यहा क्लिी ने वि मत व्यय में उलझ, अरे, दरझन के बल यया तय पूर्वज भव-जलधि तिरे ? मन पूछ नि मम्मुन जो कुछ आये आने दे, ले है पग पगार कर, वह गधु हो या पद, शू ने उसे ग्रहह्म बरता है, बस, इससे निच होगा -नू अगल है या है तू पट्ट। हम विरमा जनम में 1 la