पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५८

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होती नभ से जीवन-दायिनी अमिय-वर्षा, पर, यदि कृशानु की नदी बह उठे अम्बर से- तब क्या तू यो कह उठेगा कि अन्याय हुआ क्या सृष्टा से है प्रेम? नहीं प्रलयकर से? 7 कट गया मोह का जाल, मिट गया भ्रम भारी, जो तेरे सारे सपने चकनानूर जो अपने कहने भर को ये हो गये अन्य अच्छा है, जो कि निवाट थे वे अब दूर हुए। गड ममा पग थली मे जो काटा कोकड का में मोल उठा है दुष्ट स्यभान - युरत काटा। पर, शूल बोल उट्ठा झुंझला कर, ओ अन्धे, निज चरण-भग्ण हित तूने मुझको यो छाँटा ? में पड़ा हुआ था, तु निकला उम पथ हो कर, ओ' चरण लोन कर के मुझको तू ले आया, अब खटक रहा हूँ तर तू क्यो रोता है, २, तू ही तो मुझको जरा सूने पथ से लाया। तू एकाकी था, मै अब तेरा रागो हूँ जायगा वही रहूँगा रहूँगा तेरे संग, लँगडाता है तो लंगा ले, कितु मित्र- मुझसे ही तो है निपट कण्टफित तव अग अग । है बात ठीक यह मम पग तल गत कण्टकः को, है मेरा दोप कि मैने पाव धरा उस पर, पर, यदि उसमे सुमनोचित गुण होते तो क्या- वह मुझे सालता रहता यो भीतर घुस कर। हम पिषपायी जनम फ