पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५७४

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आशा और मुक्ति व्याकुलता फिर अब निखर उठे कुन्दन-सी, लगन लगे आदश चरण में वह शुक जाये अभिवन्दन-ती, क्रन्दन, रण हुकार भयकर दिशि-दिशि, भरता जाये ऐरो- ज्यालामुखी दोलमाला से घन-विस्फोट भरा हो जैसे, एक-एक चिनगी जाये अभिनव जीवन की सचारी, अरी, धधया उठ धक-धक कर तू, महानाश पो भट्टी प्यारी । बन मान और मर्यादा टूटी, विखर गयी गरिमा क्षण-भर मे, रण - हुकार - कारिणी क्षमता लुप्त हो गयी है अम्बर में, गिरि-गह्वर मे यन - उपवन मे अथवा किसी शून्य प्रान्तर मे- डोल रहे है कुछ दीवाने से आशा-प्रदीप निज कर में, कब से खोज रहे हैं तुमको सर्वनाश की ओ चितमारी, अरी, धधक च धक धक कर तू महानाश की भी प्यारी। इम दिपायी सनमक ६८