पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५७५

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आज, रण सव्यसाचो का खाण्डव विपिन-दहन फिर से दिखला दे, अग्नि-कुमारी को तू फिर मे तनिक पति-क्रोडा सिखला दे, दिखला दे कि मरण जीवन है प्रागण भगवन् गीता है, मिला दे कि अनात शान्ति यह केवल तुझने परिणीता है, तेरी अनुगामिनी बनी है सुकुमारी, क्यों झिझपे, री, धधक बंधक, तू महानाय यो भट्ठी प्यागे। नव प्रभात रूपा प्रयकर, जल, भल, यार।श अग्नि मा पुण्ण बने विराल भयंकर, यतुल महा घ्योग पशा यह यो उमी पी परिधि रिसर, मार गिज भार मेग फिर आग रगे गयरिती पपरे माय 4447मना औ' TATTI गर जा जायें बाग-याग। प्रगै, पर पम पर पर मा पो भी दाग। -10 HIT 11477 अभ्मना,