पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५७७

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गडगडाहट गगन-भर में यह मामा, यह गडगडाहट, भर गयी है गगन भर में, आज गरजा है भयानक नाश भीषण, विकट स्वर म । मृत्यु अति विकराल, दुदम, गगन में मंडरा रही है, ज्याल - जिह्वा लपलपाती मेदिनी पर आ रही है, चर-अचर को भूनती, वह गर निगलती जा रही है, कर रही हुमार बैठो वह शतघ्नी उदर में, और उसरा विवट गजन भर गया है मगन-भर में । व्यक्तियो या नचितो या जनपद के है नहीं पेवर मरण यह, ₹ सहमा अब्दियों अपर रण यह माता ने सजाया उपमारण पर अंग रहीय धरित्री प्रत्यदुर धार म, आज गरजा भयानर 17 भोषण, विट ग्यर म, विष्णवी या क्या विणा पिता TEA पर रिमोसन गुमर ur 5 > .